व्रज – चैत्र शुक्ल नवमी, बुधवार, 17 अप्रैल 2024
आज की विशेषता :- आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्मदिवस रामनवमी है.
- पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में से चार अवतारों श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्रीवामन को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है.
- भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का एक शाब्दिक अर्थ कृपा भी है.
- ऊष्ण प्रकृति के होने के कारण आज से प्रभु को सभी प्रकार के जमीकंद रतालू, सूरण, अरबी और शकरकंद आदि भी नहीं अरोगाये जाते.
- ये जमीकंद भी आगामी विजयदशमी से पुनः अरोगाये जाने प्रारंभ होंगे.
श्रीजी का सेवाक्रम :
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं.
- आज दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- सभी समां (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाल में की जाती है.
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व दूसरे राजभोग की सखड़ी में दहीभात अरोगाये जाते हैं. - आज श्रीजी में राजभोग के दो दर्शन होते हैं.
- प्रथम राजभोग दर्शन में प्रभु के साथ विराजित श्री बालकृष्णलालजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है.
- शुद्ध स्नान करके पीताम्बर माला धरायी जाती हैं.
- श्रीजी व श्री बालकृष्णजी को तिलक-अक्षत किये जाते हैं.
- दर्शन पश्चात उत्सव भोग रखे जाते हैं जिसमें खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर-युक्त बासोंदी, जीरा-युक्त दही, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार), फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
- आज राजभोग से संध्या-आरती तक श्रीजी में नियम की कलात्मक चैत्री गुलाब की मंडली आती है. इन पुष्प की यह विशेषता है कि ये केवल चैत्र मास में ही पल्लवित होते हैं. सामान्य गुलाब की तुलना में इसकी पत्तियां अधिक कोमल एवं इसकी सुगंध कई गुना अधिक होती है.
- श्रृंगार समय धरायी जाने वाली लाल पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में श्रीजी विराजित होते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया पर गुलाबी एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को केसरी जामदानी के चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा (तनी बाँध के)धराये जाते हैं.
- सूथन लाल छापा का धराया जाता हैं.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा की प्रधानता के धराये जाते हैं.
- नीचे पदक, ऊपर माला, दुलड़ा व हार उत्सववत धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.
- बाजु, पौंची व पान हीरा-माणक के धराये जाते हैं.
- हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
- चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है. श्रीहस्त में मोती का कमल भी धराया जाता है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : आज मंगलचार कौशल
- राजभोग : प्रकट भये है राम माई
- दुसरे राज भोग : आज अयोध्या प्रकटे राम
- आरती : मोहन राय नन्द कुमार
- शयन : चरण कमल बंदो जगदीश
- मान : छांड दे माननी श्याम संग रुठवो
- पोढवे : पोढ़े हरि राधिका के गेह
- राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली बड़ी कर (हटा) दी जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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